तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी
छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान
एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी
भोर में थकान, फिर शोर में थकान
पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी
दिन की उठान में था, उड़ता विमान
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।