निर्वासन के उन्तालीस साल
तो भी कोई देश हमारा समर्थन नहीं करता,
एक भी देश तक नहीं ।
हम यहाँ शरणार्थी हैं,
खो चुके एक देश के लोग,
किसी भी देश के नागरिक नहीं
तिब्बती दुनिया की सहानुभूति के पात्र --
शान्त मठवासी और ज़िन्दादिल परम्परावादी;
एक लाख और कुछ हज़ार
अच्छे से घुले-मिले हुए -
आत्मसात कर लेने वाले तमाम सांस्कृतिक आधिपत्यों में ।
हरेक चेकपोस्ट और दफ़्तर में --
मैं एक हूँ तिब्बती-भारतीय"
मुझे हर साल अपना रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट
रिन्यू करना होता है एक सलाम के साथ --
भारत में जन्मा एक शरणार्थी ।
मैं भारतीय अधिक हूँ
सिवा अपने चपटे तिब्बती चेहरे के,
नेपाली ?" थाई ?" जापानी ?"
चीनी ?" नागा ?" मणिपुरी ?"
कोई नहीं पूछता तिब्बती -?"
मैं तिब्बती हूँ
अलबत्ता मैं तिब्बत से नहीं आया,
कभी गया भी नहीं वहाँ,
तो भी सपना देखता हूँ
वहाँ मरने का ।