जग्गू कुम्हार मृत्यु से पहले
माटी खाने लगा था
इस डर से कि अपनी जड़ से टूटा आदमी
पान का पत्ता होता है
जिसे सिर्फ़ चुल्लू भर पानी के छींटे पर
ज़िन्दा रख -- दाँत से कूँच
माटी में थूका जाता है ।
पान की तरह
ज़िन्दा रहने के बजाय
अपनी जड़ के क़रीब मरना
जैसे उसे क़बूल था ।
आज जग्गू माटी के बाहर है
दुनिया के लिए हवा है
पर अपने विश्वास में कहीं
वह मौत की दवा है।
बात इतनी है
माटी खा -- माटी से जुड़ने का विचार
उस कुम्हार की
ग़लत अमल थी ।