अगर आज गाँधी जी होते!
क़दम-क़दम पर झूठ देखकर,
जाति-धर्म की फूट देखकर,
नहीं एक पल भी वो सोते।
अगर आज गाँधी जी होते!
युद्ध अशान्ति, देश में झगड़े,
हिंसा, रंगभेद के लफ़ड़े,
देख-देखकर नयन भिगोते।
अगर आज गाँधी जी होते!
बम, बन्दूक़, छुरे की भाषा,
उग्रवाद का देख तमाशा,
सत्य-न्याय के बिरवे बोते।
अगर आज गाँधी जी होते!
सत्याग्रह, अनशन के द्वारा,
करते वे कल्याण हमारा,
एक सूत्र में हमें पिरोते।
अगर आज गाँधी जी होते!