Last modified on 19 जुलाई 2015, at 01:39

शाम / देवेन्द्र कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:39, 19 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कन्धे तक झुक आई
शाम ।

साये में पेड़ कुछ खड़े
दिन के नखरे
बड़े-बड़े
अँधेरा कुडुक,
आई शाम ।

नन्हा-मुन्ना कोई ख़्वाब
होठों से तोड़ता गुलाब
रटता है
बाम, बाम, बाम ।

एक मानसून अनूठी
सागर में, देह में उठी
गहरे कौतुक
आई शाम ।