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चश्मा / भारत यायावर

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इस चश्मे की एक अलग ही दुनिया है


सोहन बाबू की आँखें

जब पहनती हैं इसे

पूरी की पूरी दुनिया का

रंग ही बदल जाता है


कड़ाके की धूप में

यह चश्मा

एक गिलास शरबत की तरह है

सोहन बाबू के लिए


सूरज की तीव्रता से

लेता है

लगातार टक्कर

अंधड़ की रेत से

आँखों को रखता है सुरक्षित


यह चश्मा है

आँखों की कमीज़ है


सोहन बाबू

शाम होने के पूर्व ही

इस कमीज़ को मोड़कर

अपनी कमीज़ की जेब में रख लेते हैं

रात घर लौट

कमीज़ को टांग देते हैं दीवार पर


कमीज़ की जेब में पड़ा चश्मा

रात भर

आराम की नींद लेता है

और सोहन बाबू के जागने के बाद भी

सोता रहता है बेफ़िक्र

तब तक

जब तक सोहन बाबू

अपने घर से बाहर

एक निरन्तर चलने वाली लड़ाई में शामिल होने

नहीं निकल जाते हमेशा की तरह


सोहन बाबू को

ज़माने की लू अभी तक

झुलसाती आई है

अभी तक सोहन बाबू से

हर सूरज चिढ़ता आया है


पर अभी तक सोहन बाबू

अपने ही आदर्श पर चलते रहे हैं

अपनी ईमानदार आँखों को

बचाते रहे हैं इस चश्मे से


सोहन बाबू

अब हो गए हैं पचपन के

पर न जाने कब तक

इस चश्मे पर

झेलते रहेंगे सूर्य ग्रहण

अपने ही जीवन के