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क्या हवा चली, ओ बाबा! रुत बदली / शैलेन्द्र

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क्या हवा चली, ओ बाबा! रुत बदली
शोर है गली-गली
सौ चूहे खाए के बिल्ली हज को चली

पहले लोग मर रहे थे भूख से अभाव से
अब कही ये मर न जाएँ अपनी खाँव-खाँव से
अरे मीठी बात कड़वी लगे, गालियाँ भली

आज तो जहान की उल्टी हर एक बात है
अब हम तो कहें दिन हैं भाई, लोग कहें रात है
खेत में भी खिल रही है प्यार की कली

आम में उगे खजूर नीम में फले हैं आम
डाकुओं ने जोग लिया चोर भजे राम-राम
होश की दवा करो मियाँ फ़ज़ल अली

क्या हवा चली, ओ बाबा! रुत बदली
शोर है गली-गली
सौ चूहे खाए के बिल्ली हज को चली