नज़ीर ने इसमें 'ऊमस' (उमस), 'ईधर' (इधर), 'ऊधर' (उधर) या 'ज़ह्र' (ज़हर), 'नह्र' (नहर) आदि का ही प्रयोग किया है। फ़िराक़ गोरखपुरी का कहना है -- "जब यह कविता पढ़ना शुरू करें तो उसके छन्द के ताल-सम और झंकार और छन्द की लय को पकड़िए।"
क्या अब्र की गर्मी में घड़ी पह्र है ऊमस
गर्मी के बढ़ाने की अजब लह्र है ऊमस
पानी से पसीनों की बड़ी नह्र है ऊमस
हर बाग़ में हर दश्त में हर शह्र है ऊमस
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
कितने तो इस ऊमस के तईं कहते हैं गर्माव
यानी कि घिरा अब्र हो और आके रुकी बाव<ref>हवा</ref>
उस वक़्त तो पड़ता है ग़ज़ब जान में घबराव
दिल सीने में बेकल हो यही कहता है खा ताव
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
बदली के जो घिर आने से होती है हवा बन्द
फिर बन्द-सी गर्मी वो ग़ज़ब पड़ती है यक चन्द
पंखे कोई पकड़े कोई खोले हैं खड़ा बन्द
दम रुक के घुला जाता है करने से हर इक बन्द
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
ईधर तो पसीनों से पड़ी भीगी हैं खाटें
गर्मी से ऊधर मैल की कुछ चियूटियाँ काटें
कपड़ा जो पहनिए तो पसीने उसे आटें
नंगा जो बदन रखिए तो फिर मक्खियाँ चाटें
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
रुकने से हवा के जो बुरा होता है अहवाल
पंखा कोई आँचल कोई दामन कोई रूमाल
दम धौंकने लगता है लोहारों की गोया खाल
कुछ रुह को बेताबियाँ कुछ जान को जंजाल
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
घबरा के दम आता है कभी जाता है फूला
आराम जो दिल का है सभी जाता है भूला
आता है कभी होश कभी जाता है भूला
कपड़े भी बुरे लगते हैं जी जाता है भूला
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
होती है ऊमस जो कभी इक रात को आकर
कर डालती है फिर तो क़यामत ही मुक़र्रर
ईधर तो हवा बन्द ऊधर पिस्सू व मच्छर
पानी कोई पीवे तो वो अदहन से भी बदतर
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
जिस वक़्त हवा बन्द हो और आके घटा छाए
फिर कहिए दिल उस गर्मी में किस तरह न घबराए
ओढ़ो तो पसीना जो न ओढ़ो तो ग़ज़ब आए
पिस्सू कभी मच्छर कभी खटमल है लिपट जाए
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
गर इसमें हवा खुल गई और पानी भी लाई
तो जी में जी और जान में कुछ जान-सी आई
और इसमें जो फिर हो गई ऊमस की चढ़ाई
तो फिर वही रोना वही गुल शोर दुहाई
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
ऊमस में तो लाज़िम है कि पंखा न हवा हो
इक कोठरी हो जिसमें धुआँ आके भरा हो
और मक्खियों के वास्ते गुड़ तन से मला हो
उस वक़्त मज़ा देखिए ऊमस का कि क्या हो
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस
इस रुत में तो वल्लाह अजब ऐश है दिल ख़्वाह
मेंह बरसे है और सर्द हवा आती है हर गाह
जंगल भी हरे गुल भी खिले सब्ज़ा चरागाह
ऊमस है मगर दिल को सताती है 'नज़ीर' आह
बरसात के मौसम में निपट ज़ह्र है ऊमस
सब चीज़ तो अच्छी है पर इक क़ह्र है ऊमस