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जहाज़ / शंकरानंद

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नदी के किनारे खड़ा है जहाज़ जर्जर
पानी के छींटे दौड़-दौड़ कर इसके पास जाते हैं
वे बुलाते हैं फिर से चलने के लिए
पर अब ये संभव नहींं ।

वर्षों से ये जहाज ऐसे ही है
इसके भीतर चिड़िया का घोंसला है मकड़ियाँ है जाले हैं
रेंगता है साँप जहाज़ के फ़र्श पर
कुल मिला कर हालत यह है कि कोई भी
जहाज़ के भीतर नहीं जाना चाहता डर से

लोग कहते हैं कि यह एक समुद्री जहाज़ है
वर्षों पहले इससे व्यापारी अपना व्यापार करते थे
वे दुनिया के दूसरे देशों से सामान की ख़रीद बिक्री करते थे
और मुनाफ़ा कमाते थे
हो सकता है ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अन्य जहाज़ों की तरह यह भी एक जहाज़
हो और बेकार होने पर इसे छोड़ दिया गया हो

फिलहाल यह देश की सबसे लम्बी नदी के किनारे खड़ा है
इसकी मुण्डेर पर है घास ही घास ।