Last modified on 20 अगस्त 2015, at 14:33

हाशिया / हरे प्रकाश उपाध्याय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 20 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1

लिखने से पहले
निकाल देता हूँ हाशिए की ज़गह
हाशिए से बाहर
लिखता चला जाता हूँ

पूरे पृष्ठ में कोरा
अलग से दिखता है हाशिया
मगर हाशिए को कोई नहीं देखता
कोई नहीं पढ़ता हाशिए का मौन

हाशिए के बाहर
फैले तमाम महान विचार
लोगों को खींच लेते हैं
खींच नहीं पाती हाशिए की रिक्ति
किसी को...

2

एक कवि जब हाशिए के बाहर
व्यक्त कर लेता है अपना विचार
हाशिए के बारे में भी
लिख लेता है अपनी कविता

और नहीं मिलती उसे कोई जगह
तो आकर
हाशिए में लिखता है अपना नाम
एक बार फिर...