Last modified on 16 सितम्बर 2015, at 15:53

प्रतिध्वनि / रमापति शुक्ल

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 16 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमापति शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे मुँह से जो कुछ निकला
कौन उसे दोहराता है?
कहाँ छिपा है? किस कोने में?
क्यों न सामने आता है?
‘कौन’? कहूँ तो ‘कौन’? कहे
‘मैं’ कहने पर मैं कहता है
डाँटूँ तो वह डाँट सुनाता,
बात न कोई सहता है!
ओ हो, मैंने अब पहचाना,
रही प्रतिध्वनि यह मेरी!
जो बोलूँगा दोहराएगी,
बिना किए कुछ भी देरी।
इससे अब मैं मीठी-मीठी,
बातें मुँह से बोलूँगा!
कड़वी बातें कहने को अब
कभी नहीं मुँह खोलूँगा!