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क्या करें - मेरी तेरी निगाह में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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मेरी तेरी निगाह में जो लाख इंतज़ार हैं
जो मेरे तेरे तन बदन में लाख दिल फ़िग़ार हैं
जो मेरी तेरी उंगलियों की बेहिसी से सब क़लम नज़ार हैं
जो मेरे तेरे शहर की हर इक गली में
मेरे तेरे नक़्श-ए-पाअ के बे-निशाँ मज़ार हैं
जो मेरी तेरी रात के सितारे ज़ख़्म ज़ख़्म हैं
जो मेरी तेरी सुबह के गुलाब चाक चाक हैं
ये ज़ख़्म सारे बे-दवा ये चाक सारे बे-रफ़ू
किसी पे राख चाँद की किसी पे ओस का लहू
ये हैं भी या नहीं बता
ये है कि महज़ जाल है
मेरे तुम्हारे अंकबूत-ए-वहम का बुना हुआ
जो है तो इस का क्या करें
नहीं है तो भी क्या करें
बता, बता, बता, बता