Last modified on 28 सितम्बर 2015, at 10:54

चाय बनाओ / बालकवि बैरागी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:54, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकवि बैरागी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़े सवेरे सूरज आया,
आकर उसने मुझे जगाया,
कहने लगा, ‘बिछौना छोड़ो
मैं आया हूँ सोना छोड़ो!’

मैंने कहा, ‘पधारो आओ,
जाकर पहले चाय बनाओ,
गरम चाय के प्याले लाना
फिर आ करके मुझे जगाना,
चलो रसोईघर में जाओ
दरवाजे पर मत चिल्लाओ।’’

-साभार: मेला, अप्रेल, 1980