Last modified on 30 सितम्बर 2015, at 00:09

रंग जमाया / अरविंद कुमार

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविंद कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हुआ मिठाई का सम्मेलन,
संचालक था काला जामुन।
सजी-धजी थी खूब इमरती,
हँस-हँस सबसे बातें करती।
मचा रहा था हल्ला-गुल्ला,
लुढ़क-लुढ़क करके रसगुल्ला!

बर्फी आई थी इतराती,
साथ जलेबी रस टपकाती।
बालूशाही सोच रही थी,
बैठी खुद को कोस रही थी।
‘होगी कोई जुगत भिड़ानी,
बनूँ मिठाई की मैं रानी।’

किन्तु वाह गाजर का हलवा,
हलवे का था ऐसा जलवा।
उसने अपना रंग जमाया,
सबसे पहला नंबर पाया!

-साभार: नंदन, दिसंबर, 1990, 30