Last modified on 3 अक्टूबर 2015, at 18:48

निंदिया आई / यश मालवीय

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 3 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यश मालवीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निंदिया आई दौड़ी-दौड़ी,
हमने खाट बिछाई चौड़ी।

लिए खूब लंबे खर्राटे,
भागे बड़े मियाँ सन्नाटे,
सपने में इक महल बनाया
जोड़-जोड़कर कौड़ी-कौड़ी।

गढ़ी कहानी सच्ची झूठी,
कुंभकरण सी नींद न टूटी,
भले खोपड़ी पर टिक-टिक-टिक
घड़ी चलाती रही हथौड़ी।

सोते रहे पहनकर टाई,
कहाँ-कहाँ हम घूमे भाई,
सपने में ही जीभ जल गई
फिर भी खाई गरम पकौड़ी।