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घर की खेती / पृथ्वी पाल रैणा
द्विजेन्द्र ‘द्विज’
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अश्रुजल से प्यास बुझे तो
पी लो जितना पीना है
आंसू तो घर की खेती है
दर्द से हारे लोगों की