हम गाँवों में खिलने वाले
नन्हे-मुन्ने फूल,
चंदन बन जाती है जगकर
अंग हमारे धूल!
सीधा-सादा रहन-सहन
मोटा खाना, पहनावा,
नहीं जानते ठाट-बाट
चतुराई और दिखावा।
मिलीं गोद में हमें प्रकृति की
दो वस्तुएँ महान,
हीरे जैसी हँसी हमारी,
मोती-सी मुसकान!
-साभार: शेरसखा, कलकत्ता