Last modified on 14 अक्टूबर 2015, at 00:23

पर-स्त्री / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 14 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूसरी औरत के तिलस्म
में फिसलते रहे तुम्हारे
हाथ कान नाक आंखें
उम्र भर...

अब वही हाथ
पांव नाक और आंख मुझे
छुएं?
मुझे जूठे बर्तनों से
घिन आती है...!