Last modified on 15 अक्टूबर 2015, at 23:48

नाल / जया जादवानी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 15 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जया जादवानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक

न मैं गर्भ से बाहर आई
न नाल कटी
न बड़ी हुई कभी
धीरे-धीरे मरते हुए
गर्भ के भीतर
सोचती हूं कि
काश! किसी तरह
किसी योनि से
अपना सपना बाहर फेंक सकती!

दो

जहां भी जाती हूं
खून से लिथड़ी नाल
चली आती है
हे ईश्वर
यह देह कैसी धरती है
एक काटी नहीं कि
दूसरी निकल रही है
मेरे भीतर से...