ईश्वर!
तू है तो
है कहाँ?
स्वाद लोलुपों की जिह्वा पर
भव्य प्रसादों में बैठे
कपटी बामनों
धन्ना सेठों की तोंद में, या
सड़ाँध मारती मरी गाय की खाल में, या
मन्दिर-मन्दिर पुजाते पत्थरों
अष्टधातु की मूर्तियों,
मखमली वस्त्रों में लिपटी पोथियों,
गलाफाड़ गाते भजनों में, या
खाल पकाने की कुण्डियों के बसाते चूने में
कहाँ-कहाँ बसा है तू
अपनी तथाकथित
ज्ञानेन्द्रियाँ बन्द किए
आखिर तू है तो
है कहाँ?