कविता है नारी का शरीर,
लिखा है प्रभु परमेश्वर ने यह
प्रकृति के सबसे बडे रजिस्टर में
क्योंकि आत्मा ने उसे प्रेरित किया ।
समय उस पर दयालु था
बहुत उत्साहित थे भगवान,
भंगुर, विद्रोही सामग्री है उनके पास
पूर्ण कलात्मक महारत के साथ ।
वास्तव में स्त्री का शरीर है
गीतों में सर्वश्रेष्ठ गीत
बखूबी निराले छन्द हैं
चिकने सफ़ेद उसके अंग ।
ओह ! कितना दिव्य विचार !
ज़रूर उसकी गर्दन अनावृत्त है,
झूलता है जिस पर छोटा सिर
आकर्षक विलक्षण मुख्य विचार !
स्तन हैं कलियाँ गुलाब की
निबद्ध हैं सूक्तियों में :
अकथनीय मनोहर यति
जो कर देती है छलनी उसका दिल ।
सर्जक गढ़ता है
समानान्तर नितम्ब
अंजीर पट्टी के साथ
कोष्ठक भी है एक ख़ूबसूरत जगह ।
यह कोई बोधकविता का सार नहीं है
गीत में हैं माँस और पसलियाँ
हाथ और पैर हैं, जो हँसते हैं और करते हैं चुम्बन
खूबसूरत तुकान्त वाले होंठों के साथ ।
यहाँ साँस लेती है सच्ची कविता
हर मोड़ पर मनोहर
और उसके माथे पर है गीत
यही है पूर्णता की मुहर ।।
हे प्रभु, मैं तुम्हारे भजन गाऊँगा
और पूजा करूँगा धूल में तुम्हारी
स्वर्गिक कवि
हम हैं बस तुम्हारे कर्मचारी ।
हे प्रभु मैं डूबना चाहता हूँ
तुम्हारे गीत की भव्यता में
समर्पित होता हूँ तुम्हारे अध्ययन में
अध्ययन करूँगा मैं दिन और रात ।
हाँ, दिन और रात
नहीं खोना चाहता मैं कोई समय
बहुत पतली हो गईं हैं टाँगें मेरी
जो हो जाती हैं बहुत अध्ययन के कारण ।।
मूल जर्मन से अनुवाद -- प्रतिभा उपाध्याय