Last modified on 6 फ़रवरी 2008, at 22:45

भेड़िए / संजय कुमार कुंदन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 6 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन |संग्रह=एक लड़का मिलने आता है / संजय कुंदन }} ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज का दिन अजब-सा गुज़रा है
इस तरह
जैसे दिन के दाँतों में
गोश्त का कोई मुख़्तसर रेशा
बेसबब आ के
फँस गया-सा हो
एक मौजूदगी हो अनचाही
एक मेहमान नाख़रूश जिसे
चाहकर भी निकाल ना पाएँ
और जबरन जो तवज्जों1 माँगे
आप भी मसनुई2 तकल्लुफ़3 से
देखकर उसको मुस्कराते रहें

भेड़िए आदमी की सूरत में
इस क़दर क्यों क़रीब होते हैं


1.ध्यान, 2.कृत्रिम, 3.औपचारिकता।