राग ज्यों होता तिरोहित मींड़ में
रह गयी हैं सिसकियाँ उत्पीड़ में .
आँधियाँ हैरान इतना कर गयीं
कैंचियाँ उगने लगी हैं चीड़ में .
ज़िन्दगी का एक अनुभव ये भी है
चीटियाँ सी रेंगती हैं रीड़ में .
चोंच भर पानी परिंदे क्या करें
आग लगती जा रही है नीड़ में .
कुल मिलकर बस यही हासिल रहा
कोई भी सुनता नहीं है इस भीड़ में .