Last modified on 15 नवम्बर 2015, at 08:15

बड़ी-बी / अनिरुद्ध उमट

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:15, 15 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़ी-बी दरवाजा खोलो
तुम्हारा पान
घुँघरू, खत लाने में हुई मुझसे देरी बहुत

'हम नहीं जानते तुम कौन हो

बड़ी-बी हाथ में खत लिये
मुंँह में पान चबाए
छमछम करती दहलीज पर आ
हैरान थी

'हमने अपने मरने का दिन तय कर रखा था
हमने समझा वह आ गया है

कहती बड़ी-बी मेरी आँखों में झांक रही थी

'ठीक है गडढा ठीक ही खुदा है

कहती वे उतरीं और एक मुट्ठी मिट्टी
हमें दे गयीं