Last modified on 28 नवम्बर 2015, at 04:12

शुन्यता / मुकेश चन्द्र पाण्डेय

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:12, 28 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश चन्द्र पाण्डेय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब हिसाब नहीं रख पता मैं कुछ भी,
और बाँझ हो जाती हैं
ज्यामिति, त्रिकोणमिति
और बीजगणित भी।
जब रक्तकणों में बहती
कविता मर जाती है
बिना लिखे ही,
और शुन्यता में डूबी रहती
सब अभिव्यक्ति, स्मृतियाँ भी।
दूर तलक लम्बी सड़क पर
रह न जाए कोई भी पंथी,
और शुष्क हो जाते हैं सावन,
मौन हो जाते हैं घन भी।
जब मर जाती है संवेदना,
प्रेम, करुणा, मोह-माया
विचलित नहीं होता हृदय तब,
समाप्त हो जाती सम्भावना ही।
स्वप्न रहित इन चक्षुओं में
अन्धकार जब व्याप्त रहता
तब विकाल्पों में भी केवल
शेष रहता समर्पण ही।
जब सभी रंग रक्त होकर
शवों से रिसते निरंतर,
और जब स्वं ही स्वं से संघर्षरत हो
तब केवल प्रश्न(??) ही रहता
जटिल जीवन का निष्कर्ष भी।।