हम दोनों के बीच कोई पुल नहीं
इस यथार्थ के सिवा
कि एक ही दुनिया में रहते हैं हम
इसी जगह एक नदी ले गई मुझे
तुम एक नदी का पाट हो पीछे सूखता हुआ
जीवन की तरह, अचानक और निरर्थक
कहो, आपका क्या ख़्याल है
हम यहाँ क्यों आए हैं ?
तुम आईना क्यों दिखा रहे हो लगातार
खालीपन में मेरे चेहरे को
क्या तुम खुद पर गर्वित हुए थे
जब तुम अकेलेपन और दुःख के पिता बने
अब मैं ज़िन्दगी को अपने सपनों की निगाह से देखती हूँ
तुम अदृश्य हो रहे हो
उस आवाज़ की तरह जिसे मैं ख़ामोशी पर रखती हूँ
पापा ...