Last modified on 7 फ़रवरी 2008, at 22:24

गुनगुनाया हमें / राकेश खंडेलवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 7 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = राकेश खंडेलवाल }} रेत पर नाम लिख लिख मिटाते सभी,<br> तुमन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रेत पर नाम लिख लिख मिटाते सभी,
तुमने पत्थर पे लिख कर मिटाया हमें
शुक्रिया, मेहरबानी करम, देखिये
एक पल ही सही गुनगुनाया हमें

तुम शनासा थे दैरीना कल शाम को,
बेरुखी ओढ़ कर फिर भी हमसे मिले
हमको तुमसे शिकायत नहीं है कोई,
अपनी परछाईं ने भी भूलाया हमें

आये हम बज़्म में सोच कर सुन सकें
चंद ग़ज़लें तुम्हारी औ’ अशआर कुछ
हर कलामे सुखन बज़्म में जो पढ़ा
वो हमारा था तुमने सुनाया हमें

ध्यान अपना लगा कर थे बैठे हुए,
भूल से ही सही कोई आवाज़ दे
आई लेकर सदा न इधर को सबा,
सिर्फ़ तन्हाईयों ने बुलाया हमें

ढाई अक्षर का समझे नहीं फ़लसफ़ा,
ओढ़ कर जीस्त की हमने चादर पढ़ा
एक गुलपोश तड़पन मिली राह में
जिसने बढ़ कर गले से लगाया हमें

तुमने लहरा के सावन की अपनी घटा
भेजे पैगाम किसको, ये किसको पता
ख़्‍वाब में भी न आया हमारे कोई
तल्खियों ने थपक कर सुलाया हमें