किसी सस्ती-सड़कछाप
पत्रिका की
चलताऊ कहानी नहीं हो तुम
जिसे कोई
पढ़ ले मजबूरन
सफर काटने को
और उतरते वक्त
भूल आए
सीट पर मुड़ी-तुड़ी
तुम तो
जीवन के गहरे अनुभवों
यथार्थ की आंच से तपे-निखरे
कथानांक हो
जिसे बार-बार
पढ़े जाने पर भी
हर बार
कुछ-न-कुछ नया मिल जाता है
पाठक नहीं रह जाता
पहले सा।