Last modified on 13 दिसम्बर 2015, at 10:43

ताना-बाना / रेखा चमोली

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी जुलाहे के ताने-बाने से कम नहीं
उसके तानों का जाल
जिसमें न जाने कैसी-कैसी
मासूम चाहतें
पाली हैं उसने
कभी एक फूल के लिए महकती
तो कभी
धुर घुमक्कड बनने को मचलती
रोकना-टोकना सब बेकार
ऐसा नहीं कि
मेरा मन नहीं पढ पाती
बनती जान बूझकर अनजान
कभी नींद में भी सुलझाना चाहूॅ
उसके तानो का जाल तो
खींचते ही एक धागा
बाकि सब बजने लगते सितार से
हो जाती सुबह
धागा हाथ में लिए
उसके कई तानांे का
मुझसे कोई सरोकार नहीं
जानकर भी
मन भर-भर तानें देती
तानेबाज कहीं की
उसके तानों के पीछे छिपी बेबसी
निरूत्तर कर देती
तो कोई शरारत भरा ताना
महका जाता तन-मन
जब कभी
मस्त पहाडन मिर्ची सा तीखा छंोंका पडता
उस दिन की तो कुछ ना पूछिए
और जब
कई दिनों तक
नहीं देती वो कोई ताना
डर जाता हूॅ
कहीं मेरे उसके बीच बने ताने-बाने का
कोई धागा ढीला तो नहीं हो गया।