इन्द्रधनुष की
सुन कर बात
ठहर गयी बगुलों की पाँत
पंख रुके
ठिठक गये
भरे-भरे ताल
चौंक गये
जल-डूबे
मछुए के जाल
पूछ रहे मछली से
पानी की जात
पेड़ों ने छुए
धुले भीगे आकाश
खेतों ने
आह भरी
और कहा - काश
आती कुछ देर बाद
पगली यह रात