Last modified on 17 दिसम्बर 2015, at 15:10

पत्थरों में / हेमन्त कुकरेती

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:10, 17 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पत्थर में
पानी था
पेड़ों की स्मृति में पत्ते
घोंसलों की गन्ध में
चहचहा रहे थे

चाँद था
जो अपनी खिड़की से
हिला रहा था हाथ

चीड़ों पर
शहद की तरह लिपटा था
उजाला

सूरज नहा-धोकर
बैठा था
छुट्टी वाले दिन

चिड़ियों को
फुर्सत नहीं थी
रुककर
धूप से बात करने की

पत्थरों में केवल
होती है आग
किसने कहा यह सबसे पहले

उसे डाँटना मत

वह भी पत्थरों में ही
मिलेगा
उनके पुरखों की तरह...