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पापड़ / राग तेलंग

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जीवन जीना अगर मुष्किल लगता हो तो
कुछ-कुछ वैसा ही है
पापड़ का आटा बना सकना
और उससे भी कठिन उसे सही-सही बेल पाना
उस धारीदार स्लिम बेलन से उस खासमखास आटे के उपर
एक संतुलित मगर बराबर दबाव बनाते हुए

सच ! सोचो तो मुश्किल है हर काम इसी तरह
और अनुभव हो जाए तो कुछ भी कुछ नहीं

जीवन में आए हुए संघर्षाें को याद करते हुए बहुत याद आया पापड़

यह पापड़ ही था
जो घने जंगलों की दुर्धर्ष यात्राओं की लंबी कहानियों को
एक मुहावरे में बताने के काम आता
और फिर पहाड़ सी लगती जिं़दगी छोटी नज़र आती

कई बार तो जवानी के दौर में मिले
गुरुनुमा अजनबियों के इन बोलों से भी मिला हौसला कि
हमने भी कम पापड़ नहीं बेले खुद को अकेला मत समझो

पापड़ सिर्फ एक लफ़़्ज़ भर नहीं होता
वह गोल दुनिया के संघर्षाें के इतिहास को
हमारी स्मृति के भूगोल में
दर्ज करता चलता है कदम से कदम मिलाते

पापड़ पर फैली दिखाई देती काली मिर्च
भला कोई समझदार गिनता है क्या !
उसी से तो ज़िंदगी का स्वाद है

पापड़ ज़िंदगी की किताब का एक सुनहरा गोल पन्ना है
रोटी के बाद पृष्ठ नंबर दो

खाते हुए पापड़ ध्यान देकर सुनो उसके अल्फाज़ों की आवाज़ !

पापड़ से भोजन की शुरुआत या अंत
जीवन में श्रम से हासिल
अन्न का शुक्रियागान है
जिसे बेलते हुए भी गुनगुनाया गया था और
अब भी इसी वक़्त
यह कविता पढ़ने-सुनने के दौरान ।