Last modified on 14 फ़रवरी 2008, at 19:27

सदस्य:Anwarul hasan

Anwarul hasan (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:27, 14 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
                                                          Ibn-e-Inshaa

अपनी आवाज में दुनिया को डुबो दूं लेकिन, तुमसे मिलती हुई आवाज कहां से लाऊं।

सोचते थे कि मुंसिफ से करेंगे फरियाद वह भी कम्बख्त तेरा चाहने वाला निकला।