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अब तो यह भी याद नहीं / कमलेश द्विवेदी

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कबसे अपने बीच सहज सा हो पाया संवाद नहीं.
कब संवाद हुआ था पहले अब तो यह भी याद नहीं.

माना इक-दूजे को अब भी हम दोनों दिल से चाहें,
पर अपनी चाहत में अब क्यों पहले सा उन्माद नहीं.

जो कुछ भी महसूस किया है हमने तुमसे कह डाला,
इसमें कोई गिला-शिकवा या कोई भी फरियाद नहीं.

तुम भी जो चाहो वो कह दो हम न बुरा मानेंगे पर,
हमने हाले-दिल बतलाया छेड़ा वाद-विवाद नहीं.

कबसे गीतों-गजलों में हम गाते अपनी पीड़ायें,
पर उनका हो पाया अब तक शतप्रतिशत अनुवाद नहीं.