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नाले / प्रदीप मिश्र

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नाले


हर शहर में पाये जाते हैं नाले
बिना नालों के सम्भव नहीं है शहर

जितना बड़ा शहर उतना चौड़ा नाला
महानगरों के लिए नदियाँ नाला

मकानों के सामने से गुज़रने की
इज़ाज़त नहीं होती
पिछवाड़े पैदा होते
वहीं से शुरू होती जीवन यात्रा
जब तक शहर से बाहर न हो जाएं
सुस्ताने का ठौर नहीं पाते नाले

इनके पेट से गुज़रती है
शहर की सारी गंदगी
और मस्तिष्क में ट्यूमर की तरह होती है
शहर की सभ्यता

नाले भी मनुष्यों की तरह
शहर का हिस्सा होते हैं
हिस्सेदार होते हैं

अच्छे-बुरे दिनों के
ढलते जाते हैं उम्र के साथ
बदलता रहता है इनका आकार
फर्क आता जाता है
इनके बहाव में

शहर के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं
बहते हुए नाले
जिस तरह से घर के लिए
ज़रूरी होतीं हैं नालियाँ
चाँदनी के लिए काली रात
समुद्र के लिए ख़ारापन

ज़रूरी हैं कुछ बुरी चीज़ें भी
इस दुनिया की सुन्दरता के लिए ।