मन आंगन में बहती नदी
जाने किस को चाहती नदी
पर्वत की बेटी जो ठहरी
शीतल तभी तो होती नदी
इसकी भाषा समझ न आए
अपनी धुन में गाती नदी
रुद्रदेव का आशीर्वाद भी
यह तो राजदुलारी नदी
इक क्षण में दिल को पिघलाए
ठहरी जो चमत्कारी नदी
नागिन सी बल खाकर चलती
शमी, सिमटी, प्यारी नदी
रेत पर ख़ुद यह चलते चलते
हरियाली है बोती नदी
चाँद रात में इसको देखो
उज्ज्वल उज्व्व्ल होती नदी
इसकी पीड़ा कोई न जाने
लहर लहर है रोटी नदी.