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बस वे ही चाँद सितारे'न कों समझ पामें हैं / नवीन सी. चतुर्वेदी

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बस वे ही चाँद सितारे'न कों समझ पामें हैं ।
इस्क बारे ही इसारे'न कों समझ पामें हैं ॥

खुद नदी चीर कें बढबे की हवस में साहब ।
हम कहाँ कटते किनारे'न कों समझ पामें हैं ॥

फूँक भर कें जो उड़ामें हैं - न समझंगे वे ।
बस गुबारे ही गुबारे'न कों समझ पामें हैं ॥

आज कौ दिन हू जिरह करते भये बीत गयौ।
खास मनुआ ही खसारे'न कों समझ पामें हैं ॥

आप के हक्क में अब आप सों बिछड़ेंगे हम ।
बे-सहारे ही सहारे'न कों समझ पामें हैं ॥

जो मुकद्दर कौ भँवर काट कें उबरे हैं 'नवीन' ।
वे ही तकदीर के मारे'न कों समझ पामें हैं ॥