Last modified on 16 मई 2016, at 01:05

एक दिया चलता है आगे / कृष्ण मुरारी पहरिया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 16 मई 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक दिया चलता है आगे -
आगे अपने ज्योति बिछाता
पीछे से मैं चला आ रहा
कम्पित दुर्बल पाँव बढ़ाता

दिया जरा-सा, बाती ऊँची
डूबी हुई नेह में पूरी
इसके ही बल पर करनी है
पार समय की लम्बी दूरी

दिया चल रहा पूरे निर्जन
पर मंगल किरणें बिखराता

तम में डूबे वृक्ष-लताएँ
नर भक्षी पशु उनके पीछे
यों तो प्राण सहेजे साहस
किन्तु छिपा भय उसके नीचे

ज्योति कह रही, चले चलो अब
देखो वह प्रभात है आता