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शरणार्थी कालोनी / नवनीता कानूनगो

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वह एक माथा है जो कोई पीटता है अपनी क़िस्मत को कोसते हुए,
एक बच्ची का आँख-फाड़ता आश्चर्य
जिसने पूछा अपने दादाजी से
कि वह अलग भाषा क्यों बोलती है
और जिसे थप्पड़ मार कर चुप करा दिया गया।
वह स्थान प्रतिध्वनि है
एक अन्तिम उत्तर की।

अगर हमारी स्मृतियों में न होता काँटा
हमारा रक्त कहीं और से बहता।
मगर स्थान वही होता;
सडकों पर सीधे लेटी शर्म,
गायब हो जाने को मरे जाते गुप्त घर,
उपहास करता सामुदायिक केन्द्र।
शर्मिंदा-से मंदिर में निष्क्रिय भगवान।

कभी-कभी वे पूछते हैं की वह कहाँ हैं।
और फिर वह प्रकट होता है शहर के चेहरे पर
छिपाए गए अपराध बोध की तरह,
जलता हैं शाम की धूप-बत्ती के सिरों पर,
शंखों के मुँह से हकलाता,
भय और अपरिचित प्रार्थनाओं को
बांधता है
बोली के एक अपरिष्कृत स्वर में।

तुम उसके आँखों में देख ही नहीं पाओगे
वह स्मृति का लगभग एक वर्ग किलोमीटर,
तुम नहीं ले पाओगे वह पापी नाम।

अपमान की गलियों में,
तुम बिलकुल नहीं लांघ सकते ड्योढ़ी
किसी जीर्ण असमिया मकान की
जहाँ इतिहास रहता है स्वयं की अस्वीकृति में
खोये हुए देश से पूर्ण,
एक पागल औरत के गीत सा, उपेक्षित।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़