Last modified on 10 जून 2016, at 12:23

बहुत कुछ... / आरसी चौहान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 10 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरसी चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुना है
हवा को दमें की बीमारी लग गई है
चारपाई पर पड़ी
कराह रही है
औद्योगिक अस्पताल में

कुछ दिन पहले
कई तारे एड्स से मारे गए
अपना सूर्य भी
उसकी परिधि से बाहर नहीं है
अपने चाँद को कैंसर हो गया है
उसकी मौत के
गिने चुने दिन ही बचे है
आकाश को
कभी-कभी पागलपन का
दौरा पड़ने लगा है
पहाड़ों को लकवा मार गया है
खड़े होने के प्रयास में
वह ढह-ढिमला रहे हैं

यदा कदा
नदि़याँ रक्तताल्पता की
गम्भीर बीमारी से जूझ रहे हैं
इन नदियों के बच्चे
सूखाग्रस्त इलाकों में
दम तोड़ रहे हैं

पेड़ की टाँगो पर
आदमी की नाचती कुल्हाड़ियाँ
बयान कर रही हैं
बहुत कुछ।