कवि हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ पढ़ते हुए
एक विचार
जिसको फेंका गया था
टिटिराकर बड़े शिद्दत से निर्जन में
उगा है पहाड़ की तरह
जिसके झरने में अमृत की तरह
झरती हैं कविताएँ
शब्द चिड़ियों की तरह
करते हैं कलरव
हिरनों की तरह भरते हैं कुलाँचे
भँवरों की तरह गुनगुनाते हैं
इनका गुनगुनाना
कब कविता में ढल गया और
आदमी कब विचार में
बदल गया
यह विचार आज
सूरज-सा दमक रहा है।