Last modified on 26 फ़रवरी 2008, at 11:15

विरक्ति / शैलेन्द्र चौहान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान }} कदापि उचित नहीं दिगंत के उच्छिष्ट ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कदापि उचित नहीं

दिगंत के उच्छिष्ट पर

फैलाना पर

शमन कर भावनाओं का

मनुष्य मन पर

प्राप्त कर विजय

उड़ भी तो नहीं सकते

अबाबीलों के झुंड में

ठहरी हुई हवा

बेपनाह ताप

बहुत सुंदर हैं

नीम की हरी-हरी

पत्तों भरी ये टहनियाँ

अर्थ क्या है

पत्तों वाली टहनियों का

न हिलें यदि

उमस भरी शाम

विरक्त मन,

फैल गई है विरक्ति

बोगनवेलिया के गुलाबी फूल

करते नहीं आनंदित

यद्यपि खूबसूरत हैं वे