Last modified on 12 जून 2016, at 07:35

कोलकाता-कल्चर / तसलीमा नसरीन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:35, 12 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तसलीमा नसरीन |अनुवादक=उत्पल बैनर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रवीन्द्र सदन में आज गायन हो रहा है
नन्दन में अमजद का वादन है
शिशिर मंच पर हो रहा है नाटक
और अकादमी में भी हो रहा है कुछ।
कोलकाता के गरम-गरम कल्चर-मोहल्ले में खड़े होकर
अब गरम-गरम चाय पियो।
यहाँ-वहाँ देखो, परिचित चेहरे ढूँढ़ो,
मिल जाएँ तो सिर हिलाओ
हाय, क्या हाल हैं, कहो
सीढ़ी पर या पेड़ के नीचे इस तरह खड़े होओ
ताकि सभी तुम्हें देख सकें
देख सकें कि कल्चर-मोहल्ले में तुम नियमित आते हो

देख सकें कि उलटे-सीधे काम करके भी तुम कल्चर में व्यस्त हो
देख सकें कि गृहस्थी की तमाम झंझटों को सहकर भी
तुमने कल्चर को बचाए रखा है
वे देख सकें तुम्हारा ज़रीदार कुर्ता
कन्धे पर लटका झोला
देख सकें तुम लोगों की साड़ी

देख सकें तुम्हारी गीत-गीत कविता-कविता वाली सूरत
वे देख सकें तुम्हारे थियेटरी बाल, फ़िल्मी हाव-भाव

वे देख सकें कि तुम कल्चर-साले के बाप के बाप हो
तुम इस तरह चलो, बातें करो कि दर्शक-श्रोता जान जाएँ
कि तुम्हारे पास कम-अज़-कम एक एम्बेसेडर या मारुति भी हो सकती है
इस तरह हँसो कि लोग समझें कि मन में तुम्हारे कोई दुःख नहीं है
वे समझें कि तुम पॉश एरिये में रहते हो
उन तमाम गन्दी बस्तियों में तुम नहीं रहते
जहाँ शहर के दस लाख लोग रहा करते हैं
थोड़ा और आगे बढ़ो
किसी के बिलकुल पास जाकर खड़े होओ
मन ही मन उसे चूमो
चूमकर खु़शी से तनकर समझाओ
कि तुम उन अभागे दस लाख लोगों में से नहीं हो!

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी