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ऊपर ऊपर / केदारनाथ अग्रवाल

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कली कली जब

काल छली चुन लेगा

तब इस भू पर

मूल मध्य से

वंश कली का फिर उपजेगा,

दल के दल केशर-पराग भर,

मुख-रस से भू-रज-विराग हर,

गंध-दान कर प्रवाहमान को

रूप-दान कर नवविहान को

काल कली के वृन्त-वृन्त पर

सुमन सहर्ष सदल विकसेगा ।