डीज़ल ने आग लगाई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
खूब बढ़ी महंगाई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
पत्थर बनकर पड़ा हुआ हूँ धरती पर
याद तुम्हारी आई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
बहुत उदासी का मौसम है ख़ामोशी है
मीलों तक तन्हाई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
खेतों में फसलों के सपने देख रहा हूँ
नींद नहीं आ पाई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
एक कुआँ है कई युगों से मेरे पीछे
आगे गहरी खाई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
सरकारों ने कहा गरीबों की बस्ती में
खूब अमीरी आई है, फिर भी ज़िंदा हूँ
जंगल-जंगल आग लगी है और तुम्हारी
चिट्ठी फिर से आई है, फिर भी ज़िंदा हूँ