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आजकोॅ कविता / वसुंधरा कुमारी

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कल तांय
हमरोॅ बस्ती के पीछू जे पोखर छेलै
ऊ भताय गेलै
आरो पोखरी के उत्तर दिश
जे भैरव बसै छेलै
वै बस्ती-गाँव छोड़ी देलेॅ छै
मतर ऊ काँही ने गेलोॅ छै
रहै छै याँही
कोय खेत-खलिहानोॅ में खुल्ला-छुट्टा
केकरो देखारोॅ नै पड़ै छै
मतर कि कामरू भगत केॅ
देखारोॅ दै छै,
ओकरोॅ हंकारोॅ सुनै छै ।

कल कामरू भगत
पंचोॅ के बीच कहै छेलैµ
बड़ी जल्दिये ई इलाका में
अकाल पड़ै वाला छै
भैरव बाबा के गोड़ोॅ मेॅ
हम्मेॅ मोटोॅ-मोटोॅ लोहोॅ के जंजीर देखनें छियै
हुनकोॅ आँखो मेॅ लोर,
आरो जबेॅ-जबेॅ
भैरव के आँखी में लोर होय छै
हुनकोॅ गोड़ अपने आप बनाय जाय छै
भैरव के लोर जत्त्हैं बहतै
धरती के कोख ओत्त्है सुखतै
सोत नै सुखेॅ
चलोॅ सब एक्के साथ
भगीरथ बनी जाँव
घरे घर भगीरथ हुएॅ
नै तेॅ सगर के कहानी जानवे करै छोॅ
होन्हौ केॅ ई कलिकाल छेकै ।