याद ?
है आवाज़
पथ के पेड़ की,
राहगीरों के लिए
जो गए
- लौटे नहीं
- इस राह से !
वह
- सुबह की चांदनी है
ओस से भीगी हुई
धूप का दर्पण लिए
ओट में गूंगी खड़ी ।
वह
नदी के नील जल की वासना है
जो कगारों को
डिगाए जा रही है।
याद ?
है आवाज़
पथ के पेड़ की,
राहगीरों के लिए
जो गए
वह
ओस से भीगी हुई
धूप का दर्पण लिए
ओट में गूंगी खड़ी ।
वह
नदी के नील जल की वासना है
जो कगारों को
डिगाए जा रही है।