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याद ? / केदारनाथ अग्रवाल

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याद ?

है आवाज़

पथ के पेड़ की,

राहगीरों के लिए

जो गए

लौटे नहीं
इस राह से !

वह

सुबह की चांदनी है

ओस से भीगी हुई

धूप का दर्पण लिए

ओट में गूंगी खड़ी ।

वह

नदी के नील जल की वासना है

जो कगारों को

डिगाए जा रही है।