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आँख खुली / केदारनाथ अग्रवाल

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आँख खुली

कर उठा

करेजा कड़का ।

धूल झाड़ कर
सोता मानव
फड़का ।

रात ढली

दिन हुआ

उजेला दौड़ा ।

ताबड़तोड़
चला, बज उठा
हथौड़ा ।