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पतन / घटोत्कच / अमरेन्द्र

पाण्डव केरोॅ जी धड़कै छै
घटोत्कच कर्णोॅ केॅ देखी
भूली गेलै सबटा सेखी।

सँरगोॅ में जाय तुरत नुकैलै
नुका-छिपी के खेला खेलै
मेघोॅ के पीछू से हलकै
ताकि केकरौ नै कुछ झलकै।

तीर वहीं सें बरसाबै छै
मरखन्ना रं धमकाबै छै
तीरे नै, अन्धड़-पानी तक
कौरव डरै; डरै नानी तक।

दासिये नै, काँपै रानी तक
गैया, गुयठोॅ सें सानी तक
कुछुओ नै कर्णो ॅ सें छुपलोॅ
लेलकै तीर बीस ठो धिपलोॅ।

धनुष चढ़ाय केॅ फेंकी देलकै
घटोत्कच केॅ घेरी लेलकै
ई देखी केॅ घटोत्कच नें
अपने रं सौ रूप केॅ रचनेंµ

भेजी देलकै नीचेॅ सबकेॅ
जेकरै चाहेॅ ओकरै हपकै
हौ सौ राकस नीचें आवी
कौरव सबकेॅ पावी-पावीµ

मुड़ी मोचारै, तोड़ै हाड़
जना उखाड़ै जंगल-झाड़
कर्णो ॅ केॅ अचरज छै लागै
जन्नें-तन्नें कौरव भागै।

खुँचनें-खाँचनें आपने लोग
सबकेॅ लगै जड़ैया रोग
कर्ण हदसलै जरियो नै
कोय ओकरोॅ रं बरियो नै।

दस-दस तीर धनुष पर जोड़ी
राकस सब पर देलकै छोड़ी
अन्धड़ में जों गाछ गिरै
बिन्डोबोॅ में लोॅत घिरै।

बोहोॅ में कागज के नाव
कर्णो लेॅ सौ राकस फाव
गदा-मार सें राकस भुरता
तीर खाय केॅ उड़ै जों पत्ता।

मरलै सवो छुछुन्दर नाँखी
भनभन करतें; जेना, माँखी
ई देखी गोस्सा सें झामोॅ
कोयलोॅ बनी गेलोॅ छै तामोॅ;

घटोत्कच नें पेट बढ़ैलकै
पेटोॅ पर जाय पेट चढ़लकै
एक पेट होय गेलै दस ठो
रस्सी नाँखी लागै नस ठो।

पाण्डव केरोॅ जी धड़कै छै
घटोत्कच कर्णो ॅ केॅ देखी
भूली गेलै सबटा सेखी।

सँरगोॅ में जाय तुरत नुकैलै
नुका-छिपी के खेला खेलै
मेघोॅ के पीछू से हलकै
ताकि केकरौ नै कुछ झलकै।

तीर वहीं सें बरसाबै छै
मरखन्ना रं धमकाबै छै
तीरे नै, अन्धड़-पानी तक
कौरव डरै; डरै नानी तक।

दासिये नै, काँपै रानी तक
गैया, गुयठोॅ सें सानी तक
कुछुओ नै कर्णो ॅ सें छुपलोॅ
लेलकै तीर बीस ठो धिपलोॅ।

धनुष चढ़ाय केॅ फेंकी देलकै
घटोत्कच केॅ घेरी लेलकै
ई देखी केॅ घटोत्कच नें
अपने रं सौ रूप केॅ रचनेंµ

भेजी देलकै नीचेॅ सबकेॅ
जेकरै चाहेॅ ओकरै हपकै
हौ सौ राकस नीचें आवी
कौरव सबकेॅ पावी-पावीµ

मुड़ी मोचारै, तोड़ै हाड़
जना उखाड़ै जंगल-झाड़
कर्णो ॅ केॅ अचरज छै लागै
जन्नें-तन्नें कौरव भागै।

खुँचनें-खाँचनें आपने लोग
सबकेॅ लगै जड़ैया रोग
कर्ण हदसलै जरियो नै
कोय ओकरोॅ रं बरियो नै।

दस-दस तीर धनुष पर जोड़ी
राकस सब पर देलकै छोड़ी
अन्धड़ में जों गाछ गिरै
बिन्डोबोॅ में लोॅत घिरै।

बोहोॅ में कागज के नाव
कर्णो लेॅ सौ राकस फाव
गदा-मार सें राकस भुरता
तीर खाय केॅ उड़ै जों पत्ता।

मरलै सवो छुछुन्दर नाँखी
भनभन करतें; जेना, माँखी
ई देखी गोस्सा सें झामोॅ
कोयलोॅ बनी गेलोॅ छै तामोॅ;

घटोत्कच नें पेट बढ़ैलकै
पेटोॅ पर जाय पेट चढ़लकै
एक पेट होय गेलै दस ठो
रस्सी नाँखी लागै नस ठो।