Last modified on 10 जुलाई 2016, at 06:00

पृथ्वी / अमित कल्ला

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:00, 10 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित कल्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बादलों के
बीच से वह
पृथ्वी को
देखता है

पृथ्वी
कितने ही सूर्य
वापस लौटाती
कह देती है —

यहाँ
हर पर्वत में
इक
सूर्य रहता है।